रूद्रअष्टक का छंदानुवाद
अध्याय-2
लोक-लोक में व्याप्त हो,
आत्म-आत्म में व्यापत हो,
प्रभु महानारायण ।।1।।
अनन्त शिशधारी हो,
अनन्त नेत्रधारी हो,
प्रभु महानारायण ।।2।।
अनन्त पदधारी हो,
अनन्त सर्व व्यापक
प्रभु महानारायण ।।3।।
पंच तत्व से रचित,
गोलक रूप अभिष्ट,
प्रभु महानारायण ।।4।।
सर्व व्यष्टि समष्टि में,
सभी ओर से व्याप्त हो,
प्रभु महानारायण ।।5।।
नाभि से दस अंगुल,
परिमीत प्रदेष में,
प्रभु महानारायण ।।6।।
अन्तर्यामी स्वरूप में,
हृदय में स्थित हो,
प्रभु महानारायण ।।7।।
वर्तमान में आप हैं,
भूत भविष्य में आप,
प्रभु महानारायण ।।8।।
जगत बीज आप हैं,
अन्न द्रव्य बीज आप,
प्रभु महानारायण ।।8।।
परिमणामभूत वीर्य
नर पशु वृक्ष आप,
प्रभु महानारायण ।।9।।
अमर मोक्ष के स्वामी,
नारायण के विस्तारी,
प्रभु महानारायण ।।10।।
यह सारी विभूतियां,
आपका एक अंश है,
प्रभु महानारायण ।।11।।
अतिशय अधिक हैं,
इस जगत से आप,
प्रभु महानारायण ।।12।।
यह चतुर्थ अंश है,
आप तो हैं विराट ,
प्रभु महानारायण ।।13।।
तीन चरण आपके,
है प्रकाश स्वरूप में,
प्रभु महानारायण ।।14।।
दिव्य त्रिपद आपके,
ब्रह्माण्ड से हैं परे,
प्रभु महानारायण ।।15।।
बसते दिव्य लोक में,
सर्वोत्कृष्ट स्वरूप में
प्रभु महानारायण ।।16।।
केवल एक पाद से,
जगत में व्यापत हैं,
प्रभु महानारायण ।।17।।
इसी चरण से आप,
माया में तो प्रविष्ट हो,
प्रभु महानारायण ।।18।।
देव-नर, पशु-पक्षी,
नाना रूप धरे आप,
प्रभु महानारायण ।।19।।
नाना रूप धर कर,
चराचर में व्यापत हैं,
प्रभु महानारायण ।।20।।
आपके इस अंश से,
प्रकटे ब्राह्मण्ड देह,
प्रभु महानारायण ।।21।।
देह के अभिमानी हो,
प्रकटे हिरण्यगर्भ,
प्रभु महानारायण ।।22।।
प्रकट होकर आप,
किये हैं श्रेष्ठता सिद्ध
प्रभु महानारायण ।।23।।
तदुपरांत आपने,
रचे भूमिका व देव,
प्रभु महानारायण ।।24।।
मनुष्य आदि के देह,
रचें हैं इसके बाद,
प्रभु महानारायण ।।25।।
रचे सर्वात्मा पुरूष,
यजन होते जिसमें,
प्रभु महानारायण ।।26।।
ऐसे यज्ञ से आपने,
किये पूर्ण पृषदाज्य,
प्रभु महानारायण ।।27।।
वायु देव वाले पशु,
फिर तो रचे हैं आप,
प्रभु महानारायण ।।28।।
हरिण सा वनवासी,
रचे आप ग्रामवासी,
प्रभु महानारायण ।।29।।
पशु-पक्षी अश्व आदि,
रचे नाना जीव आप,
प्रभु महानारायण ।।30।।
ऋग्वेद व सामवेद,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।31।।
यजुर्वेद व छन्द भी,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।32।।
अश्व आदि कई प्राणी,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।33।।
जिनके हैं बहु दंत,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।34।।
गाय, भेंड़-बकरियां,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।35।।
सृष्टि रचना के पूर्व,
प्रोक्ष किये सनकादि,
प्रभु महानारायण ।।36।।
किये मानस याग की,
आपसे ही संपादन,
प्रभु महानारायण ।।37।।
साधनभूत आपसे,
किये यज्ञ संपादन,
प्रभु महानारायण ।।38।।
आपकी प्रेरणा से ही,
उपजे अहंकारादि,
प्रभु महानारायण ।।39।।
भांति-भांति की कल्पना,
किये हैं तब आपके,
प्रभु महानारायण ।।40।।
मुॅह, भुजा, जंघा, पाद,
कैसे स्वरूप आपके,
प्रभु महानारायण ।।41।।
द्विज आपके मुख से,
मुखस्थानीय हो जन्मे,
प्रभु महानारायण ।।42।।
भुजाओं से तो आपके,
क्षत्रीय वर्ण उपजे,
प्रभु महानारायण ।।43।।
दोनों जंघो से आपके,
वैश्य वर्ण जग आये,
प्रभु महानारायण ।।44।।
पद कमल आपके,
शुद्र जन उपजाये,
प्रभु महानारायण ।।45।।
मन से जन्मे चंद्रमा,
नेत्र से जन्मे हैं सूर्य,
प्रभु महानारायण ।।46।।
वायु व प्राण कर्ण से,
मुखारबिंद से अग्नि,
प्रभु महानारायण ।।47।।
नाभि से अंतरिक्ष है,
शिश से स्वर्ग महान,
प्रभु महानारायण ।।48।।
पद रज धरा बनी,
श्रव्य शब्द तो दिशाएं,
प्रभु महानारायण ।।49।।
अंग-अंग से आपके,
हुये लोक परलोक,
प्रभु महानारायण ।।50।।
अंग-प्रतिअंग लिये,
बने ज्ञानयज्ञ देह,
प्रभु महानारायण ।।51।।
वसन्त ऋतु घी हुये,
ग्रीष्म ऋतु तो समिधा,
प्रभु महानारायण ।।52।।
किये शरद हवि हो,
मानस याग संपन्न,
प्रभु महानारायण ।।53।।
तब देवों ने आपको,
पशुु सा किये भावित
प्रभु महानारायण ।।54।।
हुये फिर छंद सप्त,
सप्त परिधि स्वरूप,
प्रभु महानारायण ।।55।।
इक्कीस समिधाएं,
मास, ऋतु, लोक, सूर्य,
प्रभु महानारायण ।।56।। (मास-12, ऋतु-5,लोक-3, सूर्य-1)
या अतिजगती कृति,
गायत्री हो सप्त-सप्त,
प्रभु महानारायण ।।57।।
सिद्ध संकल्पवान हो,
देव किये अराधन,
प्रभु महानारायण ।।58।।
अवयवो को आपके,
हवि रूप मान कर,
प्रभु महानारायण ।।59।।
आपके उपासना का,
बना दिये उपादान,
प्रभु महानारायण ।।60।।
पुरातन साध्य देव,
रहते जिस स्वर्ग में,
प्रभु महानारायण ।।61।।
भक्त पाते हैं उसको,
केवल आपको साध,
प्रभु महानारायण ।।62।।
आपके उपासना का,
कई-कई हैं साधन,
प्रभु महानारायण ।।63।।
पृथ्वी जल पावक,
अरू गगन समीरा,
प्रभु महानारायण ।।64।।
ये पंच महाभूत हैं,
आपके ही प्रतिरूप,
प्रभु महानारायण ।।65।।
सूर्य रूप में पहले,
उदित होकर आप,
प्रभु महानारायण ।।66।।
हुये प्रथम अराध्य,
अपने ही भक्तो के,
प्रभु महानारायण ।।67।।
अविद्या लवलेष भी,
नही इस स्वरूप में,
प्रभु महानारायण ।।68।।
परम ज्ञानस्वरूप,
परम पुरूष आप
प्रभु महानारायण ।।69।।
जो प्राणी इस रूप से,
हो जाते हैं परिचित,
प्रभु महानारायण ।।70।।
मृत्यु को ही जीत कर,
पा लेते हैं अमरत्व,
प्रभु महानारायण ।।71।।
अमरत्व को पाने का,
और ना दूजा उपाय,
प्रभु महानारायण ।।72।।
सर्वात्मा प्रजापति भी,
अन्तर्यामी रूप धर,
प्रभु महानारायण ।।73।।
गर्भ के मध्य से वह,
प्रकट होते हैं सही,
प्रभु महानारायण ।।74।।
आजन्मा होने पर भी,
देवता योनी प्रकटे,
प्रभु महानारायण ।।75।।
तिर्यक् नर आदि बन,
योनी योनी में प्रकटे,
प्रभु महानारायण ।।76।।
ब्रह्मज्ञानी तो आपको,
तकते सब ओर से,
प्रभु महानारायण ।।77।।
जिसमें सब लोक है,
ब्रह्मा के जन्म स्थान भी,
प्रभु महानारायण ।।78।।
आदित्य प्रजापति ही,
शक्ति के हैं दाता सदा,
प्रभु महानारायण ।।79।।
जो प्रकाशित होते हैं,
क्षण-क्षण प्रतिक्षण,
प्रभु महानारायण ।।80।।
ब्रह्मा बिष्णु महेश के,
जो हित करते आये,
प्रभु महानारायण ।।81।।
इन देवताओं का जो,
परम पूज्य अराध्य,
प्रभु महानारायण ।।82।।
देवताओं से पूर्व जो,
ले चुके थे प्रादुर्भाव,
प्रभु महानारायण ।।83।।
ब्रह्मज्योति स्वरूप को,
कोटि नमन हमारा,
प्रभु महानारायण ।।84।।
इंद्रियों के अधिष्ठाता,
सकल देवताओं ने,
प्रभु महानारायण ।।85।।
ब्रह्मज्योति आदित्य से,
किये थे एक प्रार्थना,
प्रभु महानारायण ।।86।।
जो ब्राह्मण आपको ही,
अजर-अमर जाने,
प्रभु महानारायण ।।87।।
हो उनके वश में तो,
सकल देवी-देवता,
प्रभु महानारायण ।।88।।
आदित्य नारायण के,
श्री और लक्ष्मी पत्नियां,
प्रभु महानारायण ।।89।।
दिवस निशा ब्रह्मा के,
पाश्र्व स्वरूप आपके,
प्रभु महानारायण ।।90।।
नक्षत्र जो आकाश में,
स्वरूप तो हैं आपके,
प्रभु महानारायण ।।91।।
विस्तारित है जो धरा,
विस्तीर्ण मुख आपके
प्रभु महानारायण ।।92।।
प्रयत्न पूर्वक आप,
करें कल्याण हमारी,
प्रभु महानारायण ।।93।।
दीजिये हमको आप,
कल्याणमय लोक को,
प्रभु महानारायण ।।94।।
दीजिये हमको आप,
सकल योग ऐश्वर्य,
प्रभु महानारायण ।।95।।
-रमेश चौहान
।।दूसरा अध्याय पूर्ण ।।
अध्याय-2
लोक-लोक में व्याप्त हो,
आत्म-आत्म में व्यापत हो,
प्रभु महानारायण ।।1।।
अनन्त शिशधारी हो,
अनन्त नेत्रधारी हो,
प्रभु महानारायण ।।2।।
अनन्त पदधारी हो,
अनन्त सर्व व्यापक
प्रभु महानारायण ।।3।।
पंच तत्व से रचित,
गोलक रूप अभिष्ट,
प्रभु महानारायण ।।4।।
सर्व व्यष्टि समष्टि में,
सभी ओर से व्याप्त हो,
प्रभु महानारायण ।।5।।
नाभि से दस अंगुल,
परिमीत प्रदेष में,
प्रभु महानारायण ।।6।।
अन्तर्यामी स्वरूप में,
हृदय में स्थित हो,
प्रभु महानारायण ।।7।।
वर्तमान में आप हैं,
भूत भविष्य में आप,
प्रभु महानारायण ।।8।।
जगत बीज आप हैं,
अन्न द्रव्य बीज आप,
प्रभु महानारायण ।।8।।
परिमणामभूत वीर्य
नर पशु वृक्ष आप,
प्रभु महानारायण ।।9।।
अमर मोक्ष के स्वामी,
नारायण के विस्तारी,
प्रभु महानारायण ।।10।।
यह सारी विभूतियां,
आपका एक अंश है,
प्रभु महानारायण ।।11।।
अतिशय अधिक हैं,
इस जगत से आप,
प्रभु महानारायण ।।12।।
यह चतुर्थ अंश है,
आप तो हैं विराट ,
प्रभु महानारायण ।।13।।
तीन चरण आपके,
है प्रकाश स्वरूप में,
प्रभु महानारायण ।।14।।
दिव्य त्रिपद आपके,
ब्रह्माण्ड से हैं परे,
प्रभु महानारायण ।।15।।
बसते दिव्य लोक में,
सर्वोत्कृष्ट स्वरूप में
प्रभु महानारायण ।।16।।
केवल एक पाद से,
जगत में व्यापत हैं,
प्रभु महानारायण ।।17।।
इसी चरण से आप,
माया में तो प्रविष्ट हो,
प्रभु महानारायण ।।18।।
देव-नर, पशु-पक्षी,
नाना रूप धरे आप,
प्रभु महानारायण ।।19।।
नाना रूप धर कर,
चराचर में व्यापत हैं,
प्रभु महानारायण ।।20।।
आपके इस अंश से,
प्रकटे ब्राह्मण्ड देह,
प्रभु महानारायण ।।21।।
देह के अभिमानी हो,
प्रकटे हिरण्यगर्भ,
प्रभु महानारायण ।।22।।
प्रकट होकर आप,
किये हैं श्रेष्ठता सिद्ध
प्रभु महानारायण ।।23।।
तदुपरांत आपने,
रचे भूमिका व देव,
प्रभु महानारायण ।।24।।
मनुष्य आदि के देह,
रचें हैं इसके बाद,
प्रभु महानारायण ।।25।।
रचे सर्वात्मा पुरूष,
यजन होते जिसमें,
प्रभु महानारायण ।।26।।
ऐसे यज्ञ से आपने,
किये पूर्ण पृषदाज्य,
प्रभु महानारायण ।।27।।
वायु देव वाले पशु,
फिर तो रचे हैं आप,
प्रभु महानारायण ।।28।।
हरिण सा वनवासी,
रचे आप ग्रामवासी,
प्रभु महानारायण ।।29।।
पशु-पक्षी अश्व आदि,
रचे नाना जीव आप,
प्रभु महानारायण ।।30।।
ऋग्वेद व सामवेद,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।31।।
यजुर्वेद व छन्द भी,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।32।।
अश्व आदि कई प्राणी,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।33।।
जिनके हैं बहु दंत,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।34।।
गाय, भेंड़-बकरियां,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।35।।
सृष्टि रचना के पूर्व,
प्रोक्ष किये सनकादि,
प्रभु महानारायण ।।36।।
किये मानस याग की,
आपसे ही संपादन,
प्रभु महानारायण ।।37।।
साधनभूत आपसे,
किये यज्ञ संपादन,
प्रभु महानारायण ।।38।।
आपकी प्रेरणा से ही,
उपजे अहंकारादि,
प्रभु महानारायण ।।39।।
भांति-भांति की कल्पना,
किये हैं तब आपके,
प्रभु महानारायण ।।40।।
मुॅह, भुजा, जंघा, पाद,
कैसे स्वरूप आपके,
प्रभु महानारायण ।।41।।
द्विज आपके मुख से,
मुखस्थानीय हो जन्मे,
प्रभु महानारायण ।।42।।
भुजाओं से तो आपके,
क्षत्रीय वर्ण उपजे,
प्रभु महानारायण ।।43।।
दोनों जंघो से आपके,
वैश्य वर्ण जग आये,
प्रभु महानारायण ।।44।।
पद कमल आपके,
शुद्र जन उपजाये,
प्रभु महानारायण ।।45।।
मन से जन्मे चंद्रमा,
नेत्र से जन्मे हैं सूर्य,
प्रभु महानारायण ।।46।।
वायु व प्राण कर्ण से,
मुखारबिंद से अग्नि,
प्रभु महानारायण ।।47।।
नाभि से अंतरिक्ष है,
शिश से स्वर्ग महान,
प्रभु महानारायण ।।48।।
पद रज धरा बनी,
श्रव्य शब्द तो दिशाएं,
प्रभु महानारायण ।।49।।
अंग-अंग से आपके,
हुये लोक परलोक,
प्रभु महानारायण ।।50।।
अंग-प्रतिअंग लिये,
बने ज्ञानयज्ञ देह,
प्रभु महानारायण ।।51।।
वसन्त ऋतु घी हुये,
ग्रीष्म ऋतु तो समिधा,
प्रभु महानारायण ।।52।।
किये शरद हवि हो,
मानस याग संपन्न,
प्रभु महानारायण ।।53।।
तब देवों ने आपको,
पशुु सा किये भावित
प्रभु महानारायण ।।54।।
हुये फिर छंद सप्त,
सप्त परिधि स्वरूप,
प्रभु महानारायण ।।55।।
इक्कीस समिधाएं,
मास, ऋतु, लोक, सूर्य,
प्रभु महानारायण ।।56।। (मास-12, ऋतु-5,लोक-3, सूर्य-1)
या अतिजगती कृति,
गायत्री हो सप्त-सप्त,
प्रभु महानारायण ।।57।।
सिद्ध संकल्पवान हो,
देव किये अराधन,
प्रभु महानारायण ।।58।।
अवयवो को आपके,
हवि रूप मान कर,
प्रभु महानारायण ।।59।।
आपके उपासना का,
बना दिये उपादान,
प्रभु महानारायण ।।60।।
पुरातन साध्य देव,
रहते जिस स्वर्ग में,
प्रभु महानारायण ।।61।।
भक्त पाते हैं उसको,
केवल आपको साध,
प्रभु महानारायण ।।62।।
आपके उपासना का,
कई-कई हैं साधन,
प्रभु महानारायण ।।63।।
पृथ्वी जल पावक,
अरू गगन समीरा,
प्रभु महानारायण ।।64।।
ये पंच महाभूत हैं,
आपके ही प्रतिरूप,
प्रभु महानारायण ।।65।।
सूर्य रूप में पहले,
उदित होकर आप,
प्रभु महानारायण ।।66।।
हुये प्रथम अराध्य,
अपने ही भक्तो के,
प्रभु महानारायण ।।67।।
अविद्या लवलेष भी,
नही इस स्वरूप में,
प्रभु महानारायण ।।68।।
परम ज्ञानस्वरूप,
परम पुरूष आप
प्रभु महानारायण ।।69।।
जो प्राणी इस रूप से,
हो जाते हैं परिचित,
प्रभु महानारायण ।।70।।
मृत्यु को ही जीत कर,
पा लेते हैं अमरत्व,
प्रभु महानारायण ।।71।।
अमरत्व को पाने का,
और ना दूजा उपाय,
प्रभु महानारायण ।।72।।
सर्वात्मा प्रजापति भी,
अन्तर्यामी रूप धर,
प्रभु महानारायण ।।73।।
गर्भ के मध्य से वह,
प्रकट होते हैं सही,
प्रभु महानारायण ।।74।।
आजन्मा होने पर भी,
देवता योनी प्रकटे,
प्रभु महानारायण ।।75।।
तिर्यक् नर आदि बन,
योनी योनी में प्रकटे,
प्रभु महानारायण ।।76।।
ब्रह्मज्ञानी तो आपको,
तकते सब ओर से,
प्रभु महानारायण ।।77।।
जिसमें सब लोक है,
ब्रह्मा के जन्म स्थान भी,
प्रभु महानारायण ।।78।।
आदित्य प्रजापति ही,
शक्ति के हैं दाता सदा,
प्रभु महानारायण ।।79।।
जो प्रकाशित होते हैं,
क्षण-क्षण प्रतिक्षण,
प्रभु महानारायण ।।80।।
ब्रह्मा बिष्णु महेश के,
जो हित करते आये,
प्रभु महानारायण ।।81।।
इन देवताओं का जो,
परम पूज्य अराध्य,
प्रभु महानारायण ।।82।।
देवताओं से पूर्व जो,
ले चुके थे प्रादुर्भाव,
प्रभु महानारायण ।।83।।
ब्रह्मज्योति स्वरूप को,
कोटि नमन हमारा,
प्रभु महानारायण ।।84।।
इंद्रियों के अधिष्ठाता,
सकल देवताओं ने,
प्रभु महानारायण ।।85।।
ब्रह्मज्योति आदित्य से,
किये थे एक प्रार्थना,
प्रभु महानारायण ।।86।।
जो ब्राह्मण आपको ही,
अजर-अमर जाने,
प्रभु महानारायण ।।87।।
हो उनके वश में तो,
सकल देवी-देवता,
प्रभु महानारायण ।।88।।
आदित्य नारायण के,
श्री और लक्ष्मी पत्नियां,
प्रभु महानारायण ।।89।।
दिवस निशा ब्रह्मा के,
पाश्र्व स्वरूप आपके,
प्रभु महानारायण ।।90।।
नक्षत्र जो आकाश में,
स्वरूप तो हैं आपके,
प्रभु महानारायण ।।91।।
विस्तारित है जो धरा,
विस्तीर्ण मुख आपके
प्रभु महानारायण ।।92।।
प्रयत्न पूर्वक आप,
करें कल्याण हमारी,
प्रभु महानारायण ।।93।।
दीजिये हमको आप,
कल्याणमय लोक को,
प्रभु महानारायण ।।94।।
दीजिये हमको आप,
सकल योग ऐश्वर्य,
प्रभु महानारायण ।।95।।
-रमेश चौहान
।।दूसरा अध्याय पूर्ण ।।
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