शनिवार, 30 मई 2015

रूद्र महानारयण -१

रूद्र महानारयण (रूद्राष्टाधयायी का हिन्दीअनुवाद)

अध्याय-१
................................





हे प्रथम पूज्य देव,
प्रथम वंदन लेव,
तेरे शरण मैं आया ।।1।।

मन में श्रद्धा विश्वास,
हाथ दीपक उजास,
अर्पण करने लाया ।।2।।

वर्ण शब्द रस छंद,
दे प्रभु मैं मतिमंद,
शरण तुम्हारे आया ।।3।।

हे देव कृपा कीजिये,
अज्ञान हर लीजिये,
जो अंतस है समाया ।।4।।

हे गौरी सुत गणेश,
मनावे तुझे ‘रमेश‘,
कर मुझ पर दाया ।।5।।

सभी गणों के पालक,
गणपति रूप धर कर,
प्रभु आप तो पधारे ।।6।।

भक्तो के हीत साधक,
प्रियपति रूप धर,
प्रभु आप तो पधारे ।।7।।

निधियों के स्वामी आप,
निधिपति रूप धर,
प्रभु आप तो पधारे ।।8।।

हे परम धनरूपा,
हे परम ईश्वर,
प्रभु रक्षा करें मेरी ।।9।।

मैं गर्भ जाया जीव हूॅ,
आप गर्भ मुक्त देव,
करें संरक्षण मेरी ।।10।।

हे ईश्वर मेरे देव,
छंद सप्त मकरंद
कर लें स्वीकार मेरी ।।11।।

रचनाकार रक्षक,
छंद गायत्री महान,
अर्पण प्रभु आपको ।।12।।

तीनों तापों के रोधक
छंद त्रिष्टुप् मनोहारी,
अर्पण प्रभु आपको ।।13।।

जगत में विस्तारित,
जगती छंद सुजान,
अर्पण प्रभु आपको ।।14।।

जग कष्ट निवारक,
छंद अनुष्टुप् सुखारी,
अर्पण प्रभु आपको  ।।15।।

पंक्ति, बृहति, उष्णिक,
और ककुप् छन्द साथ,
करें ये शान्त आपको ।।16।।

दो पदी या तीन पदी,
चार पदी या छैः पदी,
करें ये शान्त आपको ।।17।

छन्द लक्षण रहित,
छन्द लक्षण सहित,
करें ये शान्त आपको ।।18।।

सुंदर उक्तियों द्वारा,
प्रभु रचे छंद सारा,
करें ये शान्त आपको ।।19।।

प्रजापति विषयक,
मरीचि आदि सप्तक,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।20।।

साममंत्र स्त्रोत द्वारा,
गायत्री छंद आदि से,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।21।।

श्रुतिप्रमाण साथ ले,
सत कर्मो के राह से,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।22।।

अंगिरादि पूर्वजों के,
अनुष्ठित पथ चल,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।23।।

जैसे अश्व रथी हांके,
वैसे महारथी बन,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।24।।

जागृती में दूर जाय,
सुषुप्ति तन समाय,
गतिमान मन मेरा ।।25।।

दूर तक जाने वाला,
इंद्रियों के ज्योति दाता
गतिमान मन मेरा ।।26।।

हो प्रभु संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
गतिमान मन मेरा ।।27।।

जिस मन से करते,
मेधावी पुरूष यज्ञ,
वैसे ही हो मन मेरा ।।28।।

कर्मानुश्ठान में रत,
बुद्धिसम्पन्न मन सा,
होवे प्रभु मन मेरा ।।29।।

यज्ञीय द्रव्य ज्ञान में,
मन जैसे अद्भुत है,
होवे प्रभु मन मेरा ।।30।।

प्रजाओं के शरीर में,
जैसे पूज्यभाव स्थित,
होवे प्रभु मन मेरा ।।31।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
होवे प्रभु मन मेरा ।।32।।

प्रकर्ष ज्ञानस्वरूप,
चित्त अरू धैर्य रूप,
है जो प्रभु मन मेरा ।।33।

ज्योति रूप अविनाशी,
प्राणी प्राणी घटवासी,
है जो प्रभु मन मेरा ।।34।।

कर्म अकर्म के कत्र्ता,
तन-बदन के भत्र्ता,
है जो प्रभु मन मेरा ।।35।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।36।।

भूत भविष्य आज के,
शाष्वत दृष्टा व ज्ञाता
है जो प्रभु मन मेरा ।।37।।

सप्त होताय यज्ञ के,
यज्ञ यज्ञ विस्तारक,
है जो प्रभु मन मेरा ।।38।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।39।।

ऋग्वेद की ऋचा और,
साम यजुर के मंत्र,
है जो प्रभु मन मेरा ।।40।।

अरे जुड़े नाभि पर,
जैसे रथ पहिये में,
वेद जुड़े मन मेरा ।।41।।

पट में तंतु की भांति,
प्रजा ज्ञान समेटता
प्रभु यह मन मेरा ।।42।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।43।।

रथि हांके अश्व जैसे,
मुझको हांके है वैसे,
प्रभु यह मन मेरा ।।44।।

जरा बाल यौवन से,
मुक्त अति वेगवान,
प्रभु यह मन मेरा ।।45।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।46।।

।। प्रथम अध्याय पूर्ण ।।