गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

माखन चोरी

संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी ।
मेरो घर कब आयेंगे वो, राह तके सब छोरी ।

सुना-सुना घर वो जब देखे, पहुँचे होले-होले ।
शिका तले सब ग्वाले ठाँड़े, पहुँचे खिड़की खोले ।।
ग्वाले कांधे लिये कृष्ण को, कृष्णा पकड़े डोरी ।
संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी ।

माखन मटका हाथ लिये प्रभु, बिहसी माखन खाये ।
कछुक कौर ग्वालों पर डारे, ग्वालों को ललचाये ।।
माखन मटका धरे धरा पर, लूटत सब बरजोरी ।
संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी ।

ग्वालन छुप-छुप मुदित निहारे, कृष्ण करे जब लीला ।
अंतस बिहसी डांट दिखावे, गारी देत चुटीला ।।
कृष्ण संग गोपी ग्वालन, करते जोरा-जोरी ।
संग लिये प्रभु ग्वाल बाल को, करते माखन चोरी ।
-रमेश चौहान

गुरुवार, 31 मई 2018

जपत रटत राम नाम, तरना है दुनिया

जपत रटत राम नाम, तरना है दुनिया
(लय-‘‘ठुमुक चलत रामचंद्र, बाजत पैजनिया‘‘ के जैसे)

जपत रटत राम नाम, तरना है दुनिया
जपत रटत राम नाम, तरना है दुनिया

कर्म करत एक घ्येय, एक लक्ष्य एक गेह,
भक्ति शक्ति मान रखे, भक्त बड़ा गुनिया ।।

स्वार्थ मोह राग द्वेष, जगत देह भरे क्लेश,
तजे द्वन्द देह मान, तजे मन मलनिया ।।

अंत काल साथ नहीं, जिसे कहे यही सहीं,
एक राम साथ रहे, बाकी चरदिनिया ।।

राम चरण ‘रमेश‘ धर, कहे बात विनती कर,
राम नाम मन में भर, आत्म देह ऋणिया ।।

-रमेशकुमार सिंह चौहान
नवागढ़, जिला-बेमेतरा (छ.ग.)

गुरुवार, 15 मार्च 2018

सुंदर से अति सुंदर श्यामा (मधुराष्टक)

(मत्तगयंद सवैया)

सुंदर केशव की छबि सुंदर, सुंदर केश किरीटहि सुंदर
सुंदर कर्णहि कुण्डल सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।
सुंदर मस्तक चंदन सुंदर, सुंदर घ्राण कपोलहि सुंदर ।
सुंदर लोचन भौं अति सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।

सुंदर मोहन का मुख सुंदर, सुंदर ओष्ठ हँसी अति सुंदर
सुंदर भाषण बोलिय सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।
सुंदर गर्दन सुंदर भूषण, सुंदर है पट अम्बर सुंदर ।
सुंदर है उर बाहुहि सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।

सुंदर माधव का पग सुंदर, सुंदर है चलना गति सुंदर ।
सुंदर ठाड़ भये अति सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।
सुंदर है मुरली मुख सुंदर, सुंदर नृत्यहि प्रीतहि सुंदर ।
सुंदर संगत रंगत सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।

सुंदर गोकुल ब्रज सुंदर, सुंदर है यमुना जल सुंदर ।
सुंदर गोप सखा सखि सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।
सुंदर हैं गउवें रज सुंदर, सुंदर पालन धावन सुंदर ।
सुंदर खेलहि मेलहि सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।

सुंदर कृष्णहि सृष्टिहि सुंदर, सुंदर लालन पालन सुंदर ।
सुंदर मारन धावन सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।
सुंदर कृष्ण दयानिधि सुंदर, सुंदर कारज मारग सुंदर ।
सुंदर है चरित्र तन सुंदर, सुंदर से अति सुंदर श्यामा ।।



सोमवार, 8 जून 2015

रूद्रमहानारायण-३

रूद्राष्टाध्यायी का हिन्दी पदानुवाद

अध्याय-3

।।उश्णिक छंंदाा

शिघ्रगामी व तीक्ष्ण, वज्र तो है जिनके ।
वर्षा के ही समान, उपमा है जिनके ।।1।।

अतिशय घातक, शत्रु के भयकारी ।
बहु गर्जन कर्ता, नर के क्षोभकारी ।।2।।

अपलक रहते, वह देव तो सदा ।
जो होते ही नही है, असावधान कदा ।।3।।

सैकड़ो सेनाओं को, एक साथ जीत ले ।
अद्वितय जो वीर, लड़े सृष्टि हित ले ।।4।।

हे नर तन धारी, सावधान हो सुनो ।
हे युद्व अभिलाषी, ऐसे देव को चुनो ।।5।।

भय रहित हो जो, रहे युद्व विजेता ।
एकाग्र चित्त हो जो, इंद्रीय के हो ध्येता ।।6।।

धनुश-बाण हाथ, धारण जो हैं किये ।
जयशील अजेय, जो कामना हैं दिये ।।7।।

शत्रु समूह को जो, क्षण में जीत सके ।
ऐसे इन्द्र देव हैं, जो युद्ध से ना थके ।।8।।

ऐसे इन्द्र देव से, शक्ति आप लीजिये ।
करके शत्रु नाष, वशीभूत कीजिये ।।9।।

यजमानों के यज्ञ, सोममान करते जो ।
बाहुबली शत्रु को, विनिष्ट करते वो ।।10।।

हे इन्द्र देव आप, हमारी रक्षा करें ।
नष्ट कर संताप, खुशियां झाोली भरें ।।11।

हे बृहस्पते आप, दैत्यों का नाश करें ।
हो कर रथारूढ़, धनुष हाथ धरें ।।12।।

शत्रु सेना को आप, ऐसे विदिर्ण करें ।
वज्र घात से शत्रु, दारूण आह भरें ।।13।।

हिंसक शत्रु मार, आप हुॅंकार भरें ।
ऐसे शत्रु से आप, हमारी रक्षा करें ।।14।।

हे इन्द्र देव आप, देव पुरातन हो।
अपनी महिमा से, देव सनातन हो ।।15।।

हे इन्द्र देव आप, अतिशय शूर हो ।
युद्ध भूमि में आप, अतिशय क्रूर हो ।।16।।

चारों ओर से आप, योद्धाओं से युक्त हो ।
परिचारिकाओं से, आप तो आवृत्त हो ।।17।।

बल के जाये आप, बलिष्टकारक हो ।
स्तुति के प्रिय पात्र, अस्तुतिकारक हो ।।18।।

हे शत्रु तिस्कारक, विजयी रथ चढ़े ।
शत्रुओं के बल को, निपुणता से पढ़े ।।19।।

हे इन्द्र सम देव, आप देव कहाये ।
इनके समान ही, आप तो जन्म पाये ।।20।।

हे देव देव देव, असुरों के नाशक ।
वेदवाणी के ज्ञाता, इंद्रियों के शासक ।।21।।

ऐसे इन्द्र देव के, उत्साह को बढ़ायें ।
देव सभी अपना, मनोबल चढ़ाये ।।22।।

शत्रुओं के प्रति जो, दयाहीन हो जाते ।
पराक्रम सम्पन्न, नाना क्रोध जगाते ।।23।।

नष्ट न होने वाले, शत्रु के संहारक ।
शत यज्ञ करता, धर्म के विस्तारक ।।24।।

नश्ट नही होते जो, कभी भी दूसरों से ।
प्रहरित न होते, जो कभी दूसरों से ।।25।।

शत्रु सेना का वह, अब विनाश करें ।
हमारी सेना में वें, नई विश्वास भरें ।।26।।

बृहस्पति व इन्द्र, देवसेना के नायक ।
शत्रु मर्दन करता, विजय के दायक ।।27।।

यज्ञपुरूष विष्णु, चलें इनके आगे ।
सोम और दक्षिणा, चलें इनके आगे ।।28।।

मरूद्गण सकल, चलें इनके आगे ।
शुभ सकल शुभ, चलें इनके आगे ।।29।।

हे देवगण सारे, जय दिलाने वालों
सारे लोकों को नाश, कर सकने वालों ।।।30।।

हे द्वादश आदित्य, हे मरूद्गण उन्चास ।
कामना देनेवालों, जगाइये विश्वास ।।31।।

इन्द्र सभा से उठे, जयनाद का घोष ।
इन्द्र वरूण को, करते पारितोष ।।32।।

हे इन्द्र देव आप, सुसज्जित होइये ।
निज शस्त्रों को आप, कर में पिरोइये।।33।।

हमारे सैनिकों को, हर्षित आप करें ।
अधिकाधिक गति, अपने अश्व भरें ।।34।।

आरूढ़ हो आप, निज विजयी रथ ।
जय घोष करके, बढ़ चलें सुपथ ।।35।।

टकराये पताका, शत्रुुओं से जब ही ।
हमारी रक्षा आप, स्वयं करें तब ही ।।36।।

हमारे धनु-बाण, विनिष्ट उन्हें करे ।
हमारे वीर सैैनिक, श्रेष्ठता सिद्ध करे ।।37।।

हे देवगण सारे, रक्षा करें हमारी ।
युद्ध भूमि में देव, विजय हो हमारी ।।38।।

शत्रुओं के प्र्राण के, हे कष्टकारी व्याधी ।
वैरियो के चित्त को, हरें कर अनाधि ।।39।

सिर आदि अंगों को, आप ग्रहण करें ।
फिर यहां से आप, अन्यत्र चले चलें ।।40।।

एक बार फिर से, समीप में जाइये।
शत्रु के हृदय में, शोक तो जगाइये ।।41।।

जोे हों शत्रु हमारे, अंधकार से घिरें ।
घनघोेर अंधेरा, वे यत्र-तत्र फिरेें ।।42।।

वेेद मन्त्रों से तीक्ष्ण, हे ब्रह्मास्त्र महान ।
प्र्रक्षिप्त हो मुझसे, हरें शत्रु केे प्र्राण ।।43।।

हे वीर सेनानियों, आकर टूट पड़ों।
शत्रुदल में आप, विजयघोष करों ।।44।।

करेंगे कल्याण, आपका इन्द्र देव ।
अपनी भुजाओं में, शक्ति उन से लेव ।।45।।

जिससे किसी प्रकार, कुछ आशंका ना हो ।
शत्रुओं सेे कभी भी, पराजय ना तो हो ।।46।।

हे मरूद्गण देव, कृपा आप कीजिये ।
शत्रु सेना में आप, तम भर दीजिये ।।47।।

शत्रु जो बढ़ रहेें, स्पर्धा करतेे हुये ।
अपने बाहु पर, बल भरते हुये ।।48।।

अकर्मण्यता तम, उनमें आप भरें ।
एक दूजे को भूल, स्वयं वें लड़ मरें ।।49।।

फैली हुई शिखा ले, बालक जैसे घूमे ।
शत्रुओं के बाण जो, ऐसे गगन चूमे ।।50।।

ऐसी दशा मेें फिर, अदिति रक्षा करे ।
हे गुरू बृहस्पति, हे इन्द्र रक्षा करें ।।51।।

हे सर्व देवगण, हमारी रक्षा करें ।
विजय दिलकार, देव कल्याण करें ।।52।।

हेे मेरे यजमान, तुम्हारा कल्याण हो ।
मर्मस्थान आपके, अब सुरक्षित हो ।।53।।

विप्रों के राजा सोम, मृत्यु से ले बचावें ।
वरूणजी आपको, कवच पहनावें ।।54।।

उत्कृष्ट से उत्कृष्ट, कवच जो  बनावें ।
सकल देवगण, विजयश्री दिलावें ।।55।।

।।तीसरा अध्याय पूर्ण ।।

सोमवार, 1 जून 2015

रूद्र महानारायण-२

रूद्रअष्टक का छंदानुवाद

               अध्याय-2




लोक-लोक में व्याप्त हो,
आत्म-आत्म में व्यापत हो,
प्रभु महानारायण ।।1।।

अनन्त शिशधारी हो,
अनन्त नेत्रधारी हो,
प्रभु महानारायण ।।2।।

अनन्त पदधारी हो,
अनन्त सर्व व्यापक
प्रभु महानारायण ।।3।।

पंच तत्व से रचित,
गोलक रूप अभिष्ट,
प्रभु महानारायण ।।4।।

सर्व व्यष्टि समष्टि में,
सभी ओर से व्याप्त हो,
प्रभु महानारायण ।।5।।

नाभि से दस अंगुल,
परिमीत प्रदेष में,
प्रभु महानारायण ।।6।।

अन्तर्यामी स्वरूप में,
हृदय में स्थित हो,
प्रभु महानारायण ।।7।।

वर्तमान में आप हैं,
भूत भविष्य में आप,
प्रभु महानारायण ।।8।।
जगत बीज आप हैं,
अन्न द्रव्य बीज आप,
प्रभु महानारायण ।।8।।

परिमणामभूत वीर्य
नर पशु वृक्ष आप,
प्रभु महानारायण ।।9।।

अमर मोक्ष के स्वामी,
नारायण के विस्तारी,
प्रभु महानारायण ।।10।।

यह सारी विभूतियां,
आपका एक अंश है,
प्रभु महानारायण ।।11।।

अतिशय अधिक हैं,
इस जगत से आप,
प्रभु महानारायण ।।12।।

यह चतुर्थ अंश है,
आप तो हैं विराट ,
प्रभु महानारायण ।।13।।

तीन चरण आपके,
है प्रकाश स्वरूप में,
प्रभु महानारायण ।।14।।

दिव्य त्रिपद आपके,
ब्रह्माण्ड से हैं परे,
प्रभु महानारायण ।।15।।

बसते दिव्य लोक में,
सर्वोत्कृष्ट स्वरूप में
प्रभु महानारायण ।।16।।

केवल एक पाद से,
जगत में व्यापत हैं,
प्रभु महानारायण ।।17।।

इसी चरण से आप,
माया में तो प्रविष्ट हो,
प्रभु महानारायण ।।18।।

देव-नर, पशु-पक्षी,
नाना रूप धरे आप,
प्रभु महानारायण ।।19।।

नाना रूप धर कर,
चराचर में व्यापत हैं,
प्रभु महानारायण ।।20।।

आपके इस अंश से,
प्रकटे ब्राह्मण्ड देह,
प्रभु महानारायण ।।21।।

देह के अभिमानी हो,
प्रकटे हिरण्यगर्भ,
प्रभु महानारायण ।।22।।

प्रकट होकर आप,
किये हैं श्रेष्ठता सिद्ध
प्रभु महानारायण ।।23।।

तदुपरांत आपने,
रचे भूमिका व देव,
प्रभु महानारायण ।।24।।

मनुष्य आदि के देह,
रचें हैं इसके बाद,
प्रभु महानारायण ।।25।।

रचे सर्वात्मा पुरूष,
यजन होते जिसमें,
प्रभु महानारायण ।।26।।

ऐसे यज्ञ से आपने,
किये पूर्ण पृषदाज्य,
प्रभु महानारायण ।।27।।

वायु देव वाले पशु,
फिर तो रचे हैं आप,
प्रभु महानारायण ।।28।।

हरिण सा वनवासी,
रचे आप ग्रामवासी,
प्रभु महानारायण ।।29।।

पशु-पक्षी अश्व आदि,
रचे नाना जीव आप,
प्रभु महानारायण ।।30।।

ऋग्वेद व सामवेद,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।31।।

यजुर्वेद व छन्द भी,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।32।।

अश्व आदि कई प्राणी,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।33।।

जिनके हैं बहु दंत,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।34।।

गाय, भेंड़-बकरियां,
हुये उत्पन्न आपसे,
प्रभु महानारायण ।।35।।

सृष्टि रचना के पूर्व,
प्रोक्ष किये सनकादि,
प्रभु महानारायण ।।36।।

किये मानस याग की,
आपसे ही संपादन,
प्रभु महानारायण ।।37।।

साधनभूत आपसे,
किये यज्ञ संपादन,
प्रभु महानारायण ।।38।।

आपकी प्रेरणा से ही,
उपजे अहंकारादि,
प्रभु महानारायण ।।39।।

भांति-भांति की कल्पना,
किये हैं तब आपके,
प्रभु महानारायण ।।40।।

मुॅह, भुजा, जंघा, पाद,
कैसे स्वरूप आपके,
प्रभु महानारायण ।।41।।

द्विज आपके मुख से,
मुखस्थानीय हो जन्मे,
प्रभु महानारायण ।।42।।

भुजाओं से तो आपके,
क्षत्रीय वर्ण उपजे,
प्रभु महानारायण ।।43।।

दोनों जंघो से आपके,
वैश्य वर्ण जग आये,
प्रभु महानारायण ।।44।।

पद कमल आपके,
शुद्र जन उपजाये,
प्रभु महानारायण ।।45।।

मन से जन्मे चंद्रमा,
नेत्र से जन्मे हैं सूर्य,
प्रभु महानारायण ।।46।।

वायु व प्राण कर्ण से,
मुखारबिंद से अग्नि,
प्रभु महानारायण ।।47।।

नाभि से अंतरिक्ष है,
शिश से स्वर्ग महान,
प्रभु महानारायण ।।48।।

पद रज धरा बनी,
श्रव्य शब्द तो दिशाएं,
प्रभु महानारायण ।।49।।

अंग-अंग से आपके,
हुये लोक परलोक,
प्रभु महानारायण ।।50।।

अंग-प्रतिअंग लिये,
बने ज्ञानयज्ञ देह,
प्रभु महानारायण ।।51।।

वसन्त ऋतु घी हुये,
ग्रीष्म ऋतु तो समिधा,
प्रभु महानारायण ।।52।।

किये शरद हवि हो,
मानस याग संपन्न,
प्रभु महानारायण ।।53।।

तब देवों ने आपको,
पशुु सा किये भावित
प्रभु महानारायण ।।54।।

हुये फिर छंद सप्त,
सप्त परिधि स्वरूप,
प्रभु महानारायण ।।55।।

इक्कीस समिधाएं,
मास, ऋतु, लोक, सूर्य,
प्रभु महानारायण ।।56।।       (मास-12, ऋतु-5,लोक-3, सूर्य-1)

या अतिजगती कृति,
गायत्री हो सप्त-सप्त,
प्रभु महानारायण ।।57।।

सिद्ध संकल्पवान हो,
देव किये अराधन,
प्रभु महानारायण ।।58।।

अवयवो को आपके,
हवि रूप मान कर,
प्रभु महानारायण ।।59।।

आपके उपासना का,
बना दिये उपादान,
प्रभु महानारायण ।।60।।

पुरातन साध्य देव,
रहते जिस स्वर्ग में,
प्रभु महानारायण ।।61।।

भक्त पाते हैं उसको,
केवल आपको साध,
प्रभु महानारायण ।।62।।

आपके उपासना का,
कई-कई हैं साधन,
प्रभु महानारायण ।।63।।

पृथ्वी जल पावक,
अरू गगन समीरा,
प्रभु महानारायण ।।64।।

ये पंच महाभूत हैं,
आपके ही प्रतिरूप,
प्रभु महानारायण ।।65।।

सूर्य रूप में पहले,
उदित होकर आप,
प्रभु महानारायण ।।66।।

हुये प्रथम अराध्य,
अपने ही भक्तो के,
प्रभु महानारायण ।।67।।

अविद्या लवलेष भी,
नही इस स्वरूप में,
प्रभु महानारायण ।।68।।

परम ज्ञानस्वरूप,
परम पुरूष आप
प्रभु महानारायण ।।69।।

जो प्राणी इस रूप से,
हो जाते हैं परिचित,
प्रभु महानारायण ।।70।।

मृत्यु को ही जीत कर,
पा लेते हैं अमरत्व,
प्रभु महानारायण ।।71।।

अमरत्व को पाने का,
और ना दूजा उपाय,
प्रभु महानारायण ।।72।।

सर्वात्मा प्रजापति भी,
अन्तर्यामी रूप धर,
प्रभु महानारायण ।।73।।

गर्भ के मध्य से वह,
प्रकट होते हैं सही,
प्रभु महानारायण ।।74।।

आजन्मा होने पर भी,
देवता योनी प्रकटे,
प्रभु महानारायण ।।75।।

तिर्यक् नर आदि बन,
योनी योनी में प्रकटे,
प्रभु महानारायण ।।76।।

ब्रह्मज्ञानी तो आपको,
तकते सब ओर से,
प्रभु महानारायण ।।77।।

जिसमें सब लोक है,
ब्रह्मा के जन्म स्थान भी,
प्रभु महानारायण ।।78।।

आदित्य प्रजापति ही,
शक्ति के हैं दाता सदा,
प्रभु महानारायण ।।79।।

जो प्रकाशित होते हैं,
क्षण-क्षण प्रतिक्षण,
प्रभु महानारायण ।।80।।

ब्रह्मा बिष्णु महेश के,
जो हित करते आये,
प्रभु महानारायण ।।81।।

इन देवताओं का जो,
परम पूज्य अराध्य,
प्रभु महानारायण ।।82।।

देवताओं से पूर्व जो,
ले चुके थे प्रादुर्भाव,
प्रभु महानारायण ।।83।।

ब्रह्मज्योति स्वरूप को,
कोटि नमन हमारा,
प्रभु महानारायण ।।84।।

इंद्रियों के अधिष्ठाता,
सकल देवताओं ने,
प्रभु महानारायण ।।85।।

ब्रह्मज्योति आदित्य से,
किये थे एक प्रार्थना,
प्रभु महानारायण ।।86।।

जो ब्राह्मण आपको ही,
अजर-अमर जाने,
प्रभु महानारायण ।।87।।

हो उनके वश में तो,
सकल देवी-देवता,
प्रभु महानारायण ।।88।।

आदित्य नारायण के,
श्री और लक्ष्मी पत्नियां,
प्रभु महानारायण ।।89।।

दिवस निशा ब्रह्मा के,
पाश्र्व स्वरूप आपके,
प्रभु महानारायण ।।90।।

नक्षत्र जो आकाश में,
स्वरूप तो हैं आपके,
प्रभु महानारायण ।।91।।

विस्तारित है जो धरा,
विस्तीर्ण मुख आपके
प्रभु महानारायण ।।92।।

प्रयत्न पूर्वक आप,
करें कल्याण हमारी,
प्रभु महानारायण ।।93।।

दीजिये हमको आप,
कल्याणमय लोक को,
प्रभु महानारायण ।।94।।

दीजिये हमको आप,
सकल योग ऐश्वर्य,
प्रभु महानारायण ।।95।।

-रमेश चौहान

।।दूसरा अध्याय पूर्ण ।।



शनिवार, 30 मई 2015

रूद्र महानारयण -१

रूद्र महानारयण (रूद्राष्टाधयायी का हिन्दीअनुवाद)

अध्याय-१
................................





हे प्रथम पूज्य देव,
प्रथम वंदन लेव,
तेरे शरण मैं आया ।।1।।

मन में श्रद्धा विश्वास,
हाथ दीपक उजास,
अर्पण करने लाया ।।2।।

वर्ण शब्द रस छंद,
दे प्रभु मैं मतिमंद,
शरण तुम्हारे आया ।।3।।

हे देव कृपा कीजिये,
अज्ञान हर लीजिये,
जो अंतस है समाया ।।4।।

हे गौरी सुत गणेश,
मनावे तुझे ‘रमेश‘,
कर मुझ पर दाया ।।5।।

सभी गणों के पालक,
गणपति रूप धर कर,
प्रभु आप तो पधारे ।।6।।

भक्तो के हीत साधक,
प्रियपति रूप धर,
प्रभु आप तो पधारे ।।7।।

निधियों के स्वामी आप,
निधिपति रूप धर,
प्रभु आप तो पधारे ।।8।।

हे परम धनरूपा,
हे परम ईश्वर,
प्रभु रक्षा करें मेरी ।।9।।

मैं गर्भ जाया जीव हूॅ,
आप गर्भ मुक्त देव,
करें संरक्षण मेरी ।।10।।

हे ईश्वर मेरे देव,
छंद सप्त मकरंद
कर लें स्वीकार मेरी ।।11।।

रचनाकार रक्षक,
छंद गायत्री महान,
अर्पण प्रभु आपको ।।12।।

तीनों तापों के रोधक
छंद त्रिष्टुप् मनोहारी,
अर्पण प्रभु आपको ।।13।।

जगत में विस्तारित,
जगती छंद सुजान,
अर्पण प्रभु आपको ।।14।।

जग कष्ट निवारक,
छंद अनुष्टुप् सुखारी,
अर्पण प्रभु आपको  ।।15।।

पंक्ति, बृहति, उष्णिक,
और ककुप् छन्द साथ,
करें ये शान्त आपको ।।16।।

दो पदी या तीन पदी,
चार पदी या छैः पदी,
करें ये शान्त आपको ।।17।

छन्द लक्षण रहित,
छन्द लक्षण सहित,
करें ये शान्त आपको ।।18।।

सुंदर उक्तियों द्वारा,
प्रभु रचे छंद सारा,
करें ये शान्त आपको ।।19।।

प्रजापति विषयक,
मरीचि आदि सप्तक,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।20।।

साममंत्र स्त्रोत द्वारा,
गायत्री छंद आदि से,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।21।।

श्रुतिप्रमाण साथ ले,
सत कर्मो के राह से,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।22।।

अंगिरादि पूर्वजों के,
अनुष्ठित पथ चल,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।23।।

जैसे अश्व रथी हांके,
वैसे महारथी बन,
सृष्टि यज्ञ पूर्ण किये ।।24।।

जागृती में दूर जाय,
सुषुप्ति तन समाय,
गतिमान मन मेरा ।।25।।

दूर तक जाने वाला,
इंद्रियों के ज्योति दाता
गतिमान मन मेरा ।।26।।

हो प्रभु संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
गतिमान मन मेरा ।।27।।

जिस मन से करते,
मेधावी पुरूष यज्ञ,
वैसे ही हो मन मेरा ।।28।।

कर्मानुश्ठान में रत,
बुद्धिसम्पन्न मन सा,
होवे प्रभु मन मेरा ।।29।।

यज्ञीय द्रव्य ज्ञान में,
मन जैसे अद्भुत है,
होवे प्रभु मन मेरा ।।30।।

प्रजाओं के शरीर में,
जैसे पूज्यभाव स्थित,
होवे प्रभु मन मेरा ।।31।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
होवे प्रभु मन मेरा ।।32।।

प्रकर्ष ज्ञानस्वरूप,
चित्त अरू धैर्य रूप,
है जो प्रभु मन मेरा ।।33।

ज्योति रूप अविनाशी,
प्राणी प्राणी घटवासी,
है जो प्रभु मन मेरा ।।34।।

कर्म अकर्म के कत्र्ता,
तन-बदन के भत्र्ता,
है जो प्रभु मन मेरा ।।35।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।36।।

भूत भविष्य आज के,
शाष्वत दृष्टा व ज्ञाता
है जो प्रभु मन मेरा ।।37।।

सप्त होताय यज्ञ के,
यज्ञ यज्ञ विस्तारक,
है जो प्रभु मन मेरा ।।38।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।39।।

ऋग्वेद की ऋचा और,
साम यजुर के मंत्र,
है जो प्रभु मन मेरा ।।40।।

अरे जुड़े नाभि पर,
जैसे रथ पहिये में,
वेद जुड़े मन मेरा ।।41।।

पट में तंतु की भांति,
प्रजा ज्ञान समेटता
प्रभु यह मन मेरा ।।42।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।43।।

रथि हांके अश्व जैसे,
मुझको हांके है वैसे,
प्रभु यह मन मेरा ।।44।।

जरा बाल यौवन से,
मुक्त अति वेगवान,
प्रभु यह मन मेरा ।।45।।

प्रबल संकल्पवान,
जगत कल्याणकारी,
हो प्रभु ये मन मेरा ।।46।।

।। प्रथम अध्याय पूर्ण ।।